यहां भगवान करते हैं इंसानों की सेवा, जानिए रतलाम में कहां है यह अनोखी जगह
रतलाम का अपना घर आश्रम प्रारंभ होने के दिन से दे रहा है अद्वितीय सेवाएं कई पर घर बने प्रभु जी और ठीक होकर पहुंचे घर

सुजीत उपाध्याय, रतलाम@prakashbharat.
अपनों से बिछड़ कर, कभी मानसिक और कभी शारीरिक रूप से भी कमजोर होकर, सडक पर दर-बदर भटकने वाले पीड़ितों का अपना घर रतलाम में नया सहारा बन गया है। पिछले 6 महीनों में अपना घर में करीब 70 बेघर आए लेकिन यहां आते ही प्रभु जी बन गए
रतलाम के सागोद में प्रारंभ अगस्त 2023 को भरतपुर की ही तर्ज पर अपना घर शुरु हुआ। पहले दिन से लेकर अब तक अपना घर से करीब 70 बेघर, मानसिक, शारीरिक रूप से विक्षिप्त प्रभुजी का जीवन बदल चुका है। यहां इनके रहने के लिए परिसर के प्रारंभ में मंदिर, साफ, सुथरे पक्के हॉल में स्वच्छ बिस्तर, कंबल, प्रतिदिन धुलाई होने वाले नए कपड़े, तीन वक्त परिसर में ही बना सात्विक, पौष्टिक भोजन और 3 वक्त चाय-नाश्ते का पूरा प्रबंध होता है। इसके साथ एमडी और एमएस डॉक्टरों के साथ साईकैट्रिस्ट की देखरेख में नर्स उनकी देखभाल और दवाईयों का भी पालन करवाते हैं।
किसी को भी दिखे प्रभुजी तो करें सूचना
यदि किसी को कोई भी जरूरतमंद प्रभुजी सड़क पर दिखाई देते हैं तो वे 6266600568 नंबर पर फोन लगाकर जानकारी दे सकते हैं। आश्रम में सूचना मिलने पर एम्बुलेंस से प्रभुजी को लाया जाता है। यहां पूरी देखरेख और ईलाज भी होता है। यह पूरी व्यवस्था निशुल्क है। हालांकि यहां कोई भी व्यक्ति स्वैच्छा से सेवा में भागीदार बन सकता है। खास बात यह है कि यहां आज तक किसी से कोई मदद नहीं मांगी गई। जो भी चाहिए होता है उसके लिए ठाकुरजी के नाम चिट्ठी लिखी जाती है। इसके आगे भगवान ही सारी जरूरतें पूरी करते आ रहे हैं.
आप को दिखे ज़रूरतमंद तो करें फोन
अपना घर आश्रम रतलाम में वर्तमान समय में 31 प्रभुजी की देखरेख की जा रही है। इसके लिए यहां 24 घंटे पैरा मेडिकल स्टाफ, बीपी, शुगर जांचने की मशीन, सभी दवाईयां, राशन और जरूरी सामानों की उपलब्धता रहती है। खाना बनाने से लेकर बाकि सभी काम भी सेवादार यहां जिम्मेदारी के साथ संभालते हंै। आश्रम में आए 12 प्रभुजी अब तक स्वस्थ होकर अपने बिछड़े परिवारों से मिल भी चुके हैं। जबकि 18 प्रभु जी को भरतपुर स्थित अपना घर पंहुचाया गया है। ये 18 ऐसे लोग हैं जिन्हें गंभीर बीमारियों के लिए 24 घंटे विशेषज्ञों की देखरेख में रखा जाना अनिवार्य था। भरतपुर में इन्हें सभी देखभाल मिल रही है।
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